कहाँ है वो युग , हिंदी कविता ! best hindi kavita ! हिंदी की बेहतरीन कविताएं खुद की कलम


 



कहाँ बचा है वो युग पुराना ,कहाँ बाकि कोई अंश रहा !!


   ना वज्रांग जैसा किसी में बल बचा ,

   ना शिव जैसी कोई शक्ति है  !

   ना बचा पाया राधा जैसा प्रेम कोई  ,

   ना मीरा के जैसी कोई भक्ति है  !

   और नहीं बचे वो गुरु द्रोण यहां ,

   ना अर्जून जैसे शिष्यों की कोई पंक्ति है  !!


   और कहाँ बचे है वो ,अस्त्र पुराने ,

   कहाँ वो कोई विद्या शस्त्र की !

   कहां बचा है वो रहना सहना,

   कहाँ वो मर्यादा वस्त्र की  !!


  कहां है वो सीता जैसी नारी यहाँ !

  कहां वो मर्यादा किसी में राम की !!

  कहां है वो कान्हा जैसा प्रेम किसी में  !

  कहाँ वो गोपीया नंद गांव की !!

  और कहाँ बचे वो मंदिर मस्जिद !

  कहाँ वो माला हरि के नाम की !!


  कहाँ बचा है वो विश्वाश यहां ,

  कहाँ किसी से आश कोई !

  कहाँ  बचे है वो अपने यहां ,

  कहाँ किसी का खाश कोई !!


 नहीं बचे वो पहले जैसे सुर-ताल कोई ,

 ना वो कोई मंगल गीत यहां !

 ना बच पाए पुराने संबंध कोई ,

 और ना वो कृष्ण-सुदामा जैसे मित यहां  !!

 नहीं बचा पाया उस युग का एक अंश कोई ,

 ना बची वो पुरानी कोई रीत यहां !!


  कहाँ बचा है वो विश्वाश यहां ,

  कहाँ किसी से आश कोई !

  कहाँ बचे है वो अपने यहां ,

  कहाँ किसी का खाश कोई !!


  नहीं बचे वो कोई लेख पुराने ,

  ना कोई उनसा लिखारी यहां !!

  नहीं बचे वो कलाकार पुराने 

  और ना उन जैसी कोई कलाकारी यहाँ 

  कहाँ बचे है वो खेल पुराने !

  कहाँ वो खिलाडी यहाँ !!


  नहीं बचे वो कोई वेद यहां !

  ना उन जैसा कोई मलहम है 

  ओऱ ना बची वो स्याही दवात 

  ना खुद की जैसी कोई कलम है  !!


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